Menu
blogid : 5213 postid : 16

गोरैया : एक संस्मरण

बावरा मन
बावरा मन
  • 16 Posts
  • 51 Comments

बात उन दिनों की है जब मैं करीब १३ साल का होऊँगा । हमारे यहाँ घरों में अक्सर गोरैया (एक पक्षी) अपना घोंसला बना लेती है । मेरे घर में भी गोरैया का एक ऐसा ही घोंसला था । उसमे गोरैया का एक जोड़ा रहा करता था । उन्हें घोंसले में आते जाते देखना अच्छा लगता था । घोंसले में गोरैया का एक नवजात बच्चा भी था । जब कभी गोरैया अपने बच्चे के लिए बाहर से कड़ी मेहनत कर अनाज के कुछ दाने लाते थे तब उनकी चहचहाहट से माहौल खुशनुमा हो जाया करता था । मैं और मेरा छोटा भाई दोनों अक्सर देखा करते थे इस दृश्य को । गोरैया के जोड़े अपने चोंच से दाना उठा उठाकर अपने बच्चे के मुँह में रखा करते थे । बहुत ही सुन्दर और आत्मीय दृश्य होता था वह । कुल मिलाकर एक छोटा मगर हँसता – खेलता परिवार था गोरैया का ।

पर कहते हैं न कि अनहोनी आपके आसपास हमेशा मंडराती रहती है । ऐसा ही कुछ हुआ उस गोरैया परिवार के साथ। बात यह थी कि जिस कमरे में उन्होंने अपना घोंसला बनाया था उसमें एक पंखा टंगा हुआ था । हालांकि हमलोग अक्सर इस बात का ध्यान रखा करते थे कि जब कभी वो कमरे में हों , पंखा बंद रहे । पर शायद होनी को कौन टाल सकता है । उस गोरैया माता-पिता में से एक उस पंखे कि चपेट में आ गया । और वहीं उसने अपने प्राण त्याग दिए, अपने पीछे एक छोटा सा संसार छोड़कर । हमने सुबह उसके निर्जीव शरीर को देखा और काफी दुखित हुए ।

उस घटना के बाद से हमलोग (मैं और मेरा छोटा भाई) तनहा अकेले बचे उस गोरैया और उसके बच्चे की गतिविधियों पर ध्यान रखने लगे । हम भी उनके दुःख में शामिल थे पर ना तो हम उन्हें सांत्वना दे सकते थे और ना ही अपनी संवेदना उनके सामने प्रकट कर सकते थे । हमलोग अक्सर नीचे बिछावन पर बैठकर उनके घोंसले की ओर देखा करते थे , जहाँ से वो गोरैया भी हमें देखा करती थी , आँखों में एक सवाल लिए जिसका जवाब शायद किसी के पास नहीं था ।

कुछ दिन इसी तरह बीतता गया । पर एक दिन ना जाने क्या हुआ , गोरैया कमरे में नहीं आई । गोरैया के उन नवजात बच्चों की तरह , हमलोग भी उसके आने का इन्तजार कर रहे थे । रात बीत गया …. सुबह हो गई … पर वो नहीं आई । बच्चा भूख से छटपटा रहा था जो कि उसके करुण आवाज़ में सहज ही प्रकट होता था । उसकी इस छटपटाहट के साथ हमारे मन में भी आशंकाओं की सुनामी उठने लगी थी । हमलोग इस सोच में पड़े थे कि आखिर क्या हुआ जो वह नहीं आई । हमसे उसकी भूख बर्दाश्त नहीं हो रही थी ।

हमलोगों ने शाम तक गोरैया का इन्तजार किया पर वह नहीं आई । अंततः हमदोनों ने गोरैया के बच्चे को खुद से ही दाना खिलाने की सोची । हमने घर में बने चावल के कुछ दाने लिए और उनके घोंसले में रख दिया , एक छोटी सी कटोरी में रखकर । कुछ देर बाद जब हमने मुआयना किया तो देखा कि सारे चावल के दाने ज्यों के त्यों पड़े थे। हम बहुत उदास हुए । हमें ऐसा लगा के शायद वो हमारे हाथ का दिया दाना नहीं खाना चाहते थे । फिर हमें ध्यान आया कि अभी तो वह नवजात है और खुद दाना नहीं चुग सकता है । तभी तो उसके माता-पिता अपनी चोंच से दाना उसके मुँह में डालते थे । तब हमने अपने हाथों से एक एक दाना लेकर उनके मुँह में डालना शुरू किया । और वह उसे सप्रेम स्वीकार करता गया । आखिर उसे भूख भी तो लगी थी …. । उसके कोमल चोंच जब हमारे हाथों कि उँगलियों को स्पर्श करते थे तो एक सुखद आनंद की अनुभूति होती थी । कुछ ही दिनों में हमारा उसका संबंध बहुत आत्मीय हो गया था । हमें ऐसा लगता था कि हमने भाषायी सीमाओं को तोड़ दिया है और मनुष्य एवं पक्षी के बीच की खाई को भी पाट दिया है । उसकी आँखें हमारे लिए भाषा और अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई थीं । उसकी चहचहाहट काफी कुछ बयां कर देती थी | तब समझ में आया की संबंधों में भाषायी विविधता कोई बड़ी समस्या नहीं है , बस आत्मीयता होनी चाहिए , प्रेम होना चाहिए । पर आज मनुष्यों के बीच शायद इसका अभाव है ।

इसी तरह दिन बीतता गया । हम उन्हें रोज दाना खिलाया करते थे , अपने हाथों से । हमें एक डर भी था कि कहीं वह गलती से ऊपर बने उस घोंसले से नीचे ना गिर जाए । हालाँकि ऐसी संभावना कम ही थी लेकिन फिर भी हमने खुद से उसके लिए एक अलग घोंसला बनाया, घास-फूस और पत्तों से पूरी तरह से सुरक्षित । हमने घोंसले को एक चारों तरफ से बंद तथा ऊपर से खुले काठ के एक बक्से में रखकर उसमें उन बच्चों को रख दिया । अब वह सुरक्षित था और हम निश्चिन्त …. । हम निश्चिन्त थे कि अब वो गिर नहीं सकता था । अब तो वो जब भी हमें देखता था बस चहकना शुरू कर देता था । फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसे देखकर हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । हुआ यह कि वह घोंसले से बाहर निकलकर कमरे में इधर – उधर फुदक रहा था । वह उड़ने की कोशिश कर रहा था । हमने भी उसके उड़ान भरने के प्रयास में अपने स्तर से सहयोग किया । हालांकि अभी वह छोटी – छोटी उड़ाने ही भरता था पर वह हमारे लिए सुकुनकारक एवं आनंदकारी था , आखिर उसने उड़ने की कोशिश जो शुरू कर दी थी । हम काफी खुश थे …. ।

फिर एक दिन आया जब उसने लम्बी उड़ान भरी और उड़कर हमारे घर के बाहर एक आम की डाली पर जा बैठा । बहुत अच्छा लग रहा था …. । खुशी हुई पर एक दुःख भी था मन में कि आज वह हमें छोड़कर अपनी दुनिया में जा रहा था । तब उसकी आँखों में दूर से ही देखा था हमने , हमारे लिए आत्मीय प्रेम को ………. और एक वादा …….. फिर से मिलने का ……. ।

kumarshivnath.blogspot.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh