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लोड़ी

बावरा मन
बावरा मन
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मुन्ने का माथा गोद में रखकर सहलाते हुए माँ लोड़ी गाए जा रही थी ” चंदा मामा आरे आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा । सोना के कटोरिया में दूध भात लै लै आवा ….” | रात का समय और बिजली गुल थी , ऊपर से गर्मी | लेकिन माँ की मीठी लोड़ी इन सब पर भाडी पड़ रही थी , मुन्ना बस सारे चीज भूलकर लोड़ी सुने जा रहा था | हवा भी शांत होकर मानो लोड़ी का आनंद ले रही हो | एक अजीब सी मिठास , प्यार और शुकून की अनुभूति के साथ वह आसमान को निहार रहा था | बाल मन काफी निर्दोष होता है , मुन्ने ने बड़े प्यार से पूछा कि माँ ये तारे कहाँ से आते हैं , इतने सारे तारे …. (कहते हुए माँ की ओर देखने लगा ) | माँ ने माथा सहलाते हुए कहा “बेटा , हर किसी को एक दिन भगवान अपने पास बुलाते हैं और जो लोग भगवान के पास होते हैं वो तारे बनकर दूर से ही हमें देखते रहते हैं ”

और ऐसा कहते हुए वह फिर से लोड़ी सुनाने लगी ….

“चंदा मामा दूर के
पूआ पकावे गुड़ के
अपने खाए थाली में
मुन्ने को दे प्याली में
प्याला गया फूट
मुन्ना गया रूठ ”

लोड़ी सुनते हुए ना जाने कब मुन्ने को नींद आ गई |

आज फिर से वह उन तारों के निहार रहा था लेकिन ……. अकेला …… | गर्मी से उसका हाल बुरा था |
उन तारों के बीच उसकी निगाह किसी को ढूँढ रही थी, शायद अपने अतीत को, अपनी ……

http://kumarshivnath.blogspot.com/

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